पदच्छेदः
Click to Toggle
परिकीर्णम् | परिकीर्ण (√परि-कृ + क्त, १.१) |
उद्यतभुजस्य | उद्यत (√उत्-यम् + क्त)–भुज (६.१) |
भुवनविवरे | भुवन–विवर (७.१) |
दुरासदम् | दुरासद (१.१) |
ज्योतिर् | ज्योतिस् (१.१) |
उपरि | उपरि (अव्ययः) |
शिरसो | शिरस् (६.१) |
विततं | वितत (√वि-तन् + क्त, १.१) |
जगृहे | जगृहे (√ग्रह् लिट् प्र.पु. एक.) |
निजान् | निज (२.३) |
मुनिदिवौकसां | मुनि–दिवौकस् (६.३) |
पथः | पथिन् (२.३) |
छन्दः
उद्गता = [१०: सजसल] + [१०: नसजग] + [११: भनजलग] + [१३: सजसजग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ |
---|
प | रि | की | र्ण | मु | द्य | त | भु | ज | स्य |
भु | व | न | वि | व | रे | दु | रा | स | दम् |
ज्यो | ति | रु | प | रि | शि | र | सो | वि | त | तं |
ज | गृ | हे | नि | जा | न्मु | नि | दि | वौ | क | सां | प | थः |