पदच्छेदः
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सुहृदः | सुहृद् (१.३) |
सहजास् | सहज (१.३) |
तथेतरे | तथा (अव्ययः)–इतर (१.३) |
मतम् | मत (२.१) |
एषां | इदम् (६.३) |
न | न (अव्ययः) |
विलङ्घयन्ति | विलङ्घयन्ति (√वि-लङ्घय् लट् प्र.पु. बहु.) |
ये | यद् (१.३) |
विनयाद् | विनय (५.१) |
इव | इव (अव्ययः) |
यापयन्ति | यापयन्ति (√यापय् लट् प्र.पु. बहु.) |
ते | तद् (१.३) |
धृतराष्ट्रात्मजम् | धृतराष्ट्र–आत्मज (२.१) |
आत्मसिद्धये | आत्मन्–सिद्धि (४.१) |
छन्दः
वियोगिनी = [१०: ससजग] १,३ + [११: सभरलग] २,४
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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सु | हृ | दः | स | ह | जा | स्त | थे | त | रे |
म | त | मे | षां | न | वि | ल | ङ्घ | य | न्ति | ये |
वि | न | या | दि | व | या | प | य | न्ति | ते |
धृ | त | रा | ष्ट्रा | त्म | ज | मा | त्म | सि | द्ध | ये |