पदच्छेदः
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विपाण्डु | विपाण्डु (२.१) |
संव्यानम् | संव्यान (२.१) |
इवानिलोद्धतं | इव (अव्ययः)–अनिल–उद्धत (√उत्-हन् + क्त, २.१) |
निरुन्धतीः | निरुन्धत् (√नि-रुध् + शतृ, २.३) |
सप्तपलाशजं | सप्तपलाश–ज (१.१) |
रजः | रजस् (१.१) |
अनाविलोन्मीलितबाणचक्षुषः | अनाविल–उन्मीलित (√उत्-मील् + क्त)–बाण–चक्षुस् (२.३) |
सपुष्पहासा | स (अव्ययः)–पुष्पहास (२.३) |
वनराजियोषितः | वन–राजि–योषित् (२.३) |
छन्दः
वंशस्थम् [१२: जतजर]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ |
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वि | पा | ण्डु | सं | व्या | न | मि | वा | नि | लो | द्ध | तं |
नि | रु | न्ध | तीः | स | प्त | प | ला | श | जं | र | जः |
अ | ना | वि | लो | न्मी | लि | त | बा | ण | च | क्षु | षः |
स | पु | ष्प | हा | सा | व | न | रा | जि | यो | षि | तः |
ज | त | ज | र |