पदच्छेदः
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निरीक्ष्यमाणा | निरीक्ष्यमाण (√निः-ईक्ष् + शानच्, १.३) |
इव | इव (अव्ययः) |
विस्मयाकुलैः | विस्मय–आकुल (३.३) |
पयोभिर् | पयस् (३.३) |
उन्मीलितपद्मलोचनैः | उन्मीलित (√उत्-मील् + क्त)–पद्म–लोचन (३.३) |
हृतप्रियादृष्टिविलासविभ्रमा | हृत (√हृ + क्त)–प्रिय–अदृष्टि–विलास–विभ्रम (८.३) |
मनो | मनस् (२.१) |
ऽस्य | इदम् (६.१) |
जह्रुः | जह्रुः (√हृ लिट् प्र.पु. बहु.) |
शफरीविवृत्तयः | शफरी–विवृत्ति (१.३) |
छन्दः
वंशस्थम् [१२: जतजर]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ |
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नि | री | क्ष्य | मा | णा | इ | व | वि | स्म | या | कु | लैः |
प | यो | भि | रु | न्मी | लि | त | प | द्म | लो | च | नैः |
हृ | त | प्रि | या | दृ | ष्टि | वि | ला | स | वि | भ्र | मा |
म | नो | ऽस्य | ज | ह्रुः | श | फ | री | वि | वृ | त्त | यः |
ज | त | ज | र |