पदच्छेदः
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सध्वानं | स (अव्ययः)–ध्वान (२.१) |
निपतितनिर्झरासु | निपतित (√नि-पत् + क्त)–निर्झर (७.३) |
मन्द्रैः | मन्द्र (३.३) |
संमूर्छन् | संमूर्छत् (√सम्-मूर्छ् + शतृ, १.१) |
प्रतिनिनदैर् | प्रतिनिनद (३.३) |
अधित्यकासु | अधित्यका (७.३) |
उद्ग्रीवैर् | उद्ग्रीव (३.३) |
घनरवशङ्कया | घन–रव–शङ्का (३.१) |
मयूरैः | मयूर (३.३) |
सोत्कण्ठं | स (अव्ययः)–उत्कण्ठा (२.१) |
ध्वनिर् | ध्वनि (१.१) |
उपशुश्रुवे | उपशुश्रुवे (√उप-श्रु लिट् प्र.पु. एक.) |
रथानाम् | रथ (६.३) |
छन्दः
प्रहर्षिणी [१३: मनजरग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ |
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स | ध्वा | नं | नि | प | ति | त | नि | र्झ | रा | सु | म | न्द्रैः |
सं | मू | र्छ | न्प्र | ति | नि | न | दै | र | धि | त्य | का | सु |
उ | द्ग्री | वै | र्घ | न | र | व | श | ङ्क | या | म | यू | रैः |
सो | त्क | ण्ठं | ध्व | नि | रु | प | शु | श्रु | वे | र | था | नाम् |
म | न | ज | र | ग |