पदच्छेदः
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व्यपोहितुं | व्यपोहितुम् (√व्यप-ऊह् + तुमुन्) |
लोचनतो | लोचन (५.१) |
मुखानिलैर् | मुखानिल (३.३) |
अपारयन्तं | अ (अव्ययः)–पारयत् (√पारय् + शतृ, २.१) |
किल | किल (अव्ययः) |
पुष्पजं | पुष्प–ज (२.१) |
रजः | रजस् (२.१) |
पयोधरेणोरसि | पयोधर (३.१)–उरस् (७.१) |
काचिद् | कश्चित् (१.१) |
उन्मनाः | उन्मनस् (१.१) |
प्रियं | प्रिय (२.१) |
जघानोन्नतपीवरस्तनी | जघान (√हन् लिट् प्र.पु. एक.)–उन्नत (√उत्-नम् + क्त)–पीवर–स्तन (१.१) |
छन्दः
वंशस्थम् [१२: जतजर]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ |
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व्य | पो | हि | तुं | लो | च | न | तो | मु | खा | नि | लै |
र | पा | र | य | न्तं | कि | ल | पु | ष्प | जं | र | जः |
प | यो | ध | रे | णो | र | सि | का | चि | दु | न्म | नाः |
प्रि | यं | ज | घा | नो | न्न | त | पी | व | र | स्त | नी |
ज | त | ज | र |