पदच्छेदः
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प्रसह्य | प्रसह्य (√प्र-सह् + ल्यप्) |
मणिम् | मणि (२.१) |
उद्धरेन् | उद्धरेत् (√उत्-हृ विधिलिङ् प्र.पु. एक.) |
मकरवक्त्रदंष्ट्रान्तरात् | मकर–वक्त्र–दंष्ट्र–अन्तर (५.१) |
समुद्रम् | समुद्र (२.१) |
अपि | अपि (अव्ययः) |
संतरेत् | संतरेत् (√सम्-तृ विधिलिङ् प्र.पु. एक.) |
प्रचलदूर्मिमालाकुलम् | प्रचलत् (√प्र-चल् + शतृ)–ऊर्मि–माला–आकुल (२.१) |
भुजङ्गम् | भुजंग (२.१) |
अपि | अपि (अव्ययः) |
कोपितं | कोपित (√कोपय् + क्त, २.१) |
शिरसि | शिरस् (७.१) |
पुष्पवद् | पुष्प–वत् (अव्ययः) |
धारयेत् | धारयेत् (√धारय् विधिलिङ् प्र.पु. एक.) |
न | न (अव्ययः) |
तु | तु (अव्ययः) |
प्रतिनिविष्टमूर्खजनचित्तम् | प्रतिनिविष्ट–मूर्ख–जन–चित्त (२.१) |
आराधयेत् | आराधयेत् (√आ-राधय् विधिलिङ् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
पृथ्वी [१७: जसजसयलग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ | १५ | १६ | १७ |
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प्र | स | ह्य | म | णि | मु | द्ध | रे | न्म | क | र | व | क्त्र | दं | ष्ट्रा | न्त | रा |
त्स | मु | द्र | म | पि | स | न्त | रे | त्प्र | च | ल | दू | र्मि | मा | ला | कु | लम् |
भु | ज | ङ्ग | म | पि | को | पि | तं | शि | र | सि | पु | ष्प | व | द्धा | र | ये |
त्न | तु | प्र | ति | नि | वि | ष्ट | मू | र्ख | ज | न | चि | त्त | मा | रा | ध | येत् |
ज | स | ज | स | य | ल | ग |