पदच्छेदः
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संतप्तायसि | संतप्त (√सम्-तप् + क्त)–अयस् (७.१) |
संस्थितस्य | संस्थित (√सम्-स्था + क्त, ६.१) |
पयसो | पयस् (६.१) |
नामापि | नामन् (१.१)–अपि (अव्ययः) |
न | न (अव्ययः) |
ज्ञायते | ज्ञायते (√ज्ञा प्र.पु. एक.) |
मुक्ताकारतया | मुक्त (√मुच् + क्त)–आकार–ता (३.१) |
तद् | तद् (१.१) |
एव | एव (अव्ययः) |
नलिनीपत्रस्थितं | नलिनी–पत्त्र–स्थित (√स्था + क्त, १.१) |
राजते | राजते (√राज् लट् प्र.पु. एक.) |
स्वात्यां | स्वाति (७.१) |
सागरशुक्तिमध्यपतितं | सागर–शुक्ति–मध्य–पतित (√पत् + क्त, १.१) |
तन्मौक्तिकं | तद् (१.१)–मौक्तिक (१.१) |
जायते | जायते (√जन् लट् प्र.पु. एक.) |
प्रायेणाधममध्यमोत्तमगुणः | प्रायेण (अव्ययः)–अधम–मध्यम–उत्तम–गुण (१.१) |
संसर्गतो | संसर्ग (५.१) |
जायते | जायते (√जन् लट् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
शार्दूलविक्रीडितम् [१९: मसजसततग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ | १५ | १६ | १७ | १८ | १९ |
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स | न्त | प्ता | य | सि | सं | स्थि | त | स्य | प | य | सो | ना | मा | पि | न | ज्ञा | य | ते |
मु | क्ता | का | र | त | या | त | दे | व | न | लि | नी | प | त्र | स्थि | तं | रा | ज | ते |
स्वा | त्यां | सा | ग | र | शु | क्ति | म | ध्य | प | ति | तं | त | न्मौ | क्ति | कं | जा | य | ते |
प्रा | ये | णा | ध | म | म | ध्य | मो | त्त | म | गु | णः | सं | स | र्ग | तो | जा | य | ते |
म | स | ज | स | त | त | ग |