पदच्छेदः
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यदा | यदा (अव्ययः) |
किंचिज्ज्ञो | कश्चित् (२.१)–ज्ञ (१.१) |
ऽहं | मद् (१.१) |
द्विप | द्विप (१.१) |
इव | इव (अव्ययः) |
मदान्धः | मद–अन्ध (१.१) |
समभवं | समभवम् (√सम्-भू लङ् उ.पु. ) |
तदा | तदा (अव्ययः) |
सर्वज्ञो | सर्व–ज्ञ (१.१) |
ऽस्मीत्य् | अस्मि (√अस् लट् उ.पु. )–इति (अव्ययः) |
अभवद् | अभवत् (√भू लङ् प्र.पु. एक.) |
अवलिप्तं | अवलिप्त (√अव-लिप् + क्त, १.१) |
मम | मद् (६.१) |
मनः | मनस् (१.१) |
यदा | यदा (अव्ययः) |
किंचित्किंचिद्बुधजनसकाशाद् | कश्चित् (१.१)–कश्चित् (१.१)–बुध–जन–सकाशात् (अव्ययः) |
अवगतं | अवगत (√अव-गम् + क्त, १.१) |
तदा | तदा (अव्ययः) |
मूर्खो | मूर्ख (१.१) |
ऽस्मीति | अस्मि (√अस् लट् उ.पु. )–इति (अव्ययः) |
ज्वर | ज्वर (१.१) |
इव | इव (अव्ययः) |
मदो | मद (१.१) |
मे | मद् (६.१) |
व्यपगतः | व्यपगत (√व्यप-गम् + क्त, १.१) |
छन्दः
शिखरिणी [१७: यमनसभलग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ | १५ | १६ | १७ |
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य | दा | कि | ञ्चि | ज्ज्ञो | ऽहं | द्वि | प | इ | व | म | दा | न्धः | स | म | भ | वं |
त | दा | स | र्व | ज्ञो | ऽस्मी | त्य | भ | व | द | व | लि | प्तं | म | म | म | नः |
य | दा | कि | ञ्चि | त्कि | ञ्चि | द्बु | ध | ज | न | स | का | शा | द | व | ग | तं |
त | दा | मू | र्खो | ऽस्मी | ति | ज्व | र | इ | व | म | दो | मे | व्य | प | ग | तः |
य | म | न | स | भ | ल | ग |