पदच्छेदः
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भग्नाशस्य | भग्न (√भञ्ज् + क्त)–आशा (६.१) |
करण्डपिण्डिततनोर् | करण्ड–पिण्डित (√पिण्डय् + क्त)–तनु (६.१) |
म्लानेन्द्रियस्य | म्लान (√म्ला + क्त)–इन्द्रिय (६.१) |
क्षुधा | क्षुध् (३.१) |
कृत्वाखुर् | कृत्वा (√कृ + क्त्वा)–आखु (१.१) |
विवरं | विवर (२.१) |
स्वयं | स्वयम् (अव्ययः) |
निपतितो | निपतित (√नि-पत् + क्त, १.१) |
नक्तं | नक्त (२.१) |
मुखे | मुख (७.१) |
भोगिनः | भोगिन् (६.१) |
तृप्तस् | तृप्त (√तृप् + क्त, १.१) |
तत्पिशितेन | तद्–पिशित (३.१) |
सत्वरम् | स (अव्ययः)–त्वरा (२.१) |
असौ | अदस् (१.१) |
तेनैव | तेन (अव्ययः)–एव (अव्ययः) |
यातः | यात (√या + क्त, १.१) |
यथा | यथा (अव्ययः) |
लोकाः | लोक (८.३) |
पश्यत | पश्यत (√पश् लोट् म.पु. द्वि.) |
दैवम् | दैव (१.१) |
एव | एव (अव्ययः) |
हि | हि (अव्ययः) |
नृणां | नृ (६.३) |
वृद्धौ | वृद्धि (७.१) |
क्षये | क्षय (७.१) |
कारणम् | कारण (१.१) |
छन्दः
शार्दूलविक्रीडितम् [१९: मसजसततग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ | १५ | १६ | १७ | १८ | १९ |
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भ | ग्ना | श | स्य | क | र | ण्ड | पि | ण्डि | त | त | नो | र्म्ला | ने | न्द्रि | य | स्य | क्षु | धा |
कृ | त्वा | खु | र्वि | व | रं | स्व | यं | नि | प | ति | तो | न | क्तं | मु | खे | भो | गि | नः |
तृ | प्त | स्त | त्पि | शि | ते | न | स | त्व | र | म | सौ | ते | नै | व | या | तः | य | था |
लो | काः | प | श्य | त | दै | व | मे | व | हि | नृ | णां | वृ | द्धौ | क्ष | ये | का | र | णम् |
म | स | ज | स | त | त | ग |