पदच्छेदः
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केशाः | केश (१.३) |
संयमिनः | संयमिन् (१.३) |
श्रुतेर् | श्रुति (६.१) |
अपि | अपि (अव्ययः) |
परं | पर (२.१) |
पारं | पार (२.१) |
गते | गत (√गम् + क्त, १.२) |
लोचने | लोचन (१.२) |
अन्तर्वक्त्रम् | अन्तर् (अव्ययः)–वक्त्र (१.१) |
अपि | अपि (अव्ययः) |
स्वभावशुचिभीः | स्वभाव–शुचि–भी (१.१) |
कीर्णं | कीर्ण (√कृ + क्त, १.१) |
द्विजानां | द्विज (६.३) |
गणैः | गण (३.३) |
मुक्तानां | मुक्ता (६.३) |
सतताधिवासरुचिरौ | सतत–अधिवास–रुचिर (१.२) |
वक्षोजकुम्भाव् | वक्षोज–कुम्भ (१.२) |
इमावित्थं | इदम् (१.२)–इत्थम् (अव्ययः) |
तन्वि | तनु (८.१) |
वपुः | वपुस् (१.१) |
प्रशान्तम् | प्रशान्त (√प्र-शम् + क्त, १.१) |
अपि | अपि (अव्ययः) |
ते | त्वद् (६.१) |
रागं | राग (२.१) |
करोत्य् | करोति (√कृ लट् प्र.पु. एक.) |
एव | एव (अव्ययः) |
नः | मद् (६.३) |
छन्दः
शार्दूलविक्रीडितम् [१९: मसजसततग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ | १५ | १६ | १७ | १८ | १९ |
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के | शाः | सं | य | मि | नः | श्रु | ते | र | पि | प | रं | पा | रं | ग | ते | लो | च | ने |
अ | न्त | र्व | क्त्र | म | पि | स्व | भा | व | शु | चि | भीः | की | र्णं | द्वि | जा | नां | ग | णैः |
मु | क्ता | नां | स | त | ता | धि | वा | स | रु | चि | रौ | व | क्षो | ज | कु | म्भा | वि | मा |
वि | त्थं | त | न्वि | व | पुः | प्र | शा | न्त | म | पि | ते | रा | गं | क | रो | त्ये | व | नः |
म | स | ज | स | त | त | ग |