पदच्छेदः
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उत्खातं | उत्खात (√उत्-खन् + क्त, १.१) |
निधिशङ्कया | निधि–शङ्का (३.१) |
क्षितितलं | क्षिति–तल (१.१) |
ध्माता | ध्मात (√धम् + क्त, १.३) |
गिरेर् | गिरि (६.१) |
धातवो | धातु (१.३) |
निस्तीर्णः | निस्तीर्ण (√निः-तृ + क्त, १.१) |
सरितां | सरित् (६.३) |
पतिर् | पति (१.१) |
नृपतयो | नृपति (१.३) |
यत्नेन | यत्न (३.१) |
संतोषिताः | संतोषित (√सम्-तोषय् + क्त, १.३) |
मन्त्राराधनतत्परेण | मन्त्र–आराधन–तत्पर (३.१) |
मनसा | मनस् (३.१) |
नीताः | नीत (√नी + क्त, १.३) |
श्मशाने | श्मशान (७.१) |
निशाः | निशा (१.३) |
प्राप्तः | प्राप्त (√प्र-आप् + क्त, १.१) |
काणवराटको | काण–वराटक (१.१) |
ऽपि | अपि (अव्ययः) |
न | न (अव्ययः) |
मया | मद् (३.१) |
तृष्णे | तृष्णा (८.१) |
सकामा | स (अव्ययः)–काम (१.१) |
भव | भव (√भू लोट् म.पु. ) |
छन्दः
शार्दूलविक्रीडितम् [१९: मसजसततग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ | १५ | १६ | १७ | १८ | १९ |
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उ | त्खा | तं | नि | धि | श | ङ्क | या | क्षि | ति | त | लं | ध्मा | ता | गि | रे | र्धा | त | वो |
नि | स्ती | र्णः | स | रि | तां | प | ति | र्नृ | प | त | यो | य | त्ने | न | स | न्तो | षि | ताः |
म | न्त्रा | रा | ध | न | त | त्प | रे | ण | म | न | सा | नी | ताः | श्म | शा | ने | नि | शाः |
प्रा | प्तः | का | ण | व | रा | ट | को | ऽपि | न | म | या | तृ | ष्णे | स | का | मा | भ | व |
म | स | ज | स | त | त | ग |