पदच्छेदः
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त्वं | त्वद् (१.१) |
राजा | राजन् (१.१) |
वयम् | मद् (१.३) |
अप्य् | अपि (अव्ययः) |
उपासितगुरुप्रज्ञाभिमानोन्नताः | उपासित (√उप-आस् + क्त)–गुरु–प्रज्ञा–अभिमान–उन्नत (√उत्-नम् + क्त, १.३) |
ख्यातस् | ख्यात (√ख्या + क्त, १.१) |
त्वं | त्वद् (१.१) |
विभवैर् | विभव (३.३) |
यशांसि | यशस् (२.३) |
कवयो | कवि (१.३) |
दिक्षु | दिश् (७.३) |
प्रतन्वन्ति | प्रतन्वन्ति (√प्र-तन् लट् प्र.पु. बहु.) |
नः | मद् (६.३) |
इत्थं | इत्थम् (अव्ययः) |
मानधनातिदूरम् | मान–धन–अति (अव्ययः)–दूरम् (अव्ययः) |
उभयोर् | उभय (६.२) |
अप्य् | अपि (अव्ययः) |
आवयोर् | मद् (६.२) |
अन्तरं | अन्तर (१.१) |
यद्य् | यदि (अव्ययः) |
अस्मासु | मद् (७.३) |
पराङ्मुखो | पराङ्मुख (१.१) |
ऽसि | असि (√अस् लट् म.पु. ) |
वयम् | मद् (१.३) |
अप्य् | अपि (अव्ययः) |
एकान्ततो | एकान्ततः (अव्ययः) |
निःस्पृहाः | निःस्पृह (१.३) |
छन्दः
शार्दूलविक्रीडितम् [१९: मसजसततग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ | १५ | १६ | १७ | १८ | १९ |
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त्वं | रा | जा | व | य | म | प्यु | पा | सि | त | गु | रु | प्र | ज्ञा | भि | मा | नो | न्न | ताः |
ख्या | त | स्त्वं | वि | भ | वै | र्य | शां | सि | क | व | यो | दि | क्षु | प्र | त | न्व | न्ति | नः |
इ | त्थं | मा | न | ध | ना | ति | दू | र | मु | भ | यो | र | प्या | व | यो | र | न्त | रं |
य | द्य | स्मा | सु | प | रा | ङ्मु | खो | ऽसि | व | य | म | प्ये | का | न्त | तो | निः | स्पृ | हा |
म | स | ज | स | त | त | ग |