पदच्छेदः
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कथमपि | कथम् (अव्ययः)–अपि (अव्ययः) |
सखि | सखी (८.१) |
क्रीडाकोपाद् | क्रीडा–कोप (५.१) |
व्रजेति | व्रज (√व्रज् लोट् म.पु. )–इति (अव्ययः) |
मयोदिते | मद् (३.१)–उदित (√वद् + क्त, ७.१) |
कठिनहृदयस्त्यक्त्वा | कठिन–हृदय (१.१)–त्यक्त्वा (√त्यज् + क्त्वा) |
शय्यां | शय्या (२.१) |
बलाद् | बल (५.१) |
गत | गत (√गम् + क्त, १.१) |
एव | एव (अव्ययः) |
सः | तद् (१.१) |
इति | इति (अव्ययः) |
सरभसं | सरभस (२.१) |
ध्वस्तप्रेम्णि | ध्वस्त (√ध्वंस् + क्त)–प्रेमन् (७.१) |
व्यपेतघृणे | व्यपेत (√व्यप-इ + क्त)–घृणा (७.१) |
जने | जने (√जन् लट् उ.पु. ) |
पुनरपि | पुनर् (अव्ययः)–अपि (अव्ययः) |
हतव्रीडं | हतव्रीड (१.१) |
चेतः | चेतस् (१.१) |
प्रयाति | प्रयाति (√प्र-या लट् प्र.पु. एक.) |
करोमि | करोमि (√कृ लट् उ.पु. ) |
किम् | क (२.१) |
छन्दः
हरिणी [१७: नसमरसलग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ | १५ | १६ | १७ |
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क | थ | म | पि | स | खि | क्री | डा | को | पा | द्व्र | जे | ति | म | यो | दि | ते |
क | ठि | न | हृ | द | य | स्त्य | क्त्वा | श | य्यां | ब | ला | द्ग | त | ए | व | सः |
इ | ति | स | र | भ | सं | ध्व | स्त | प्रे | म्णि | व्य | पे | त | घृ | णे | ज | ने |
पु | न | र | पि | ह | त | व्री | डं | चे | तः | प्र | या | ति | क | रो | मि | किम् |
न | स | म | र | स | ल | ग |