पदच्छेदः
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त्वं | त्वद् (१.१) |
मुग्धाक्षि | मुग्धाक्षी (८.१) |
विनैव | विना (अव्ययः)–एव (अव्ययः) |
कञ्चुलिकया | कञ्चुलिका (३.१) |
धत्से | धत्से (√धा लट् म.पु. ) |
मनोहारिणीं | मनोहारिन् (२.१) |
लक्ष्मीमित्यभिधायिनि | लक्ष्मी (२.१)–इति (अव्ययः)–अभिधायिन् (७.१) |
प्रियतमे | प्रियतम (७.१) |
तद्वीटिकां | तद्–वीटिका (२.१) |
संस्पृशि | संस्पृश् (७.१) |
शय्योपान्तनिविष्टसस्मितमुखीनेत्रोत्सवानन्दितो | शय्या–उपान्त–निविष्ट (√नि-विश् + क्त)–सस्मित–मुखी–नेत्रोत्सव–आनन्दित (√आ-नन्द् + क्त, १.१) |
निर्यातः | निर्यात (√निः-या + क्त, १.१) |
शनकैरलीकवचनोपन्यासम् | शनकैस् (अव्ययः)–अलीक–वचनोपन्यास (२.१) |
आलीजनः | आलि–जन (१.१) |
छन्दः
शार्दूलविक्रीडितम् [१९: मसजसततग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ | १५ | १६ | १७ | १८ | १९ |
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त्वं | मु | ग्धा | क्षि | वि | नै | व | क | ञ्चु | लि | क | या | ध | त्से | म | नो | हा | रि | णीं |
ल | क्ष्मी | मि | त्य | भि | धा | यि | नि | प्रि | य | त | मे | त | द्वी | टि | कां | सं | स्पृ | शि |
श | य्यो | पा | न्त | नि | वि | ष्ट | स | स्मि | त | मु | खी | ने | त्रो | त्स | वा | न | न्दि | तो |
नि | र्या | तः | श | न | कै | र | ली | क | व | च | नो | प | न्या | स | मा | ली | ज | नः |
म | स | ज | स | त | त | ग |