पदच्छेदः
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व्यथितम् | व्यथित (√व्यथ् + क्त, २.१) |
अपि | अपि (अव्ययः) |
भृशं | भृशम् (अव्ययः) |
मनो | मनस् (२.१) |
हरन्ती | हरत् (√हृ + शतृ, १.१) |
परिणतजम्बुफलोपभोगहृष्टा | परिणत (√परि-नम् + क्त)–जम्बु–फल–उपभोग–हृष्ट (√हृष् + क्त, १.१) |
परभृतयुवतिः | परभृत–युवति (१.१) |
स्वनं | स्वन (२.१) |
वितेने | वितेने (√वि-तन् लिट् प्र.पु. एक.) |
नवनवयोजितकण्ठरागरम्यम् | नव–नव–योजित (√योजय् + क्त)–कण्ठ–राग–रम्य (२.१) |
छन्दः
पुष्पिताग्रा = [१२: ननरय] १,३ + [१२: नजजरग] २,४
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ |
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व्य | थि | त | म | पि | भृ | शं | म | नो | ह | र | न्ती |
प | रि | ण | त | ज | म्बु | फ | लो | प | भो | ग | हृ | ष्टा |
प | र | भृ | त | यु | व | तिः | स्व | नं | वि | ते | ने |
न | व | न | व | यो | जि | त | क | ण्ठ | रा | ग | र | म्यम् |