पदच्छेदः
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अवचयपरिभोगवन्ति | अवचय–परिभोगवत् (१.३) |
हिंस्रैः | हिंस्र (३.३) |
सहचरितान्य् | सहचरित (१.३) |
अमृगाणि | अ (अव्ययः)–मृग (१.३) |
काननानि | कानन (१.३) |
अभिदधुर् | अभिदधुः (√अभि-धा लिट् प्र.पु. बहु.) |
अभितो | अभितस् (अव्ययः) |
मुनिं | मुनि (२.१) |
वधूभ्यः | वधू (४.३) |
समुदितसाध्वसविक्लवं | समुदित (√समुत्-इ + क्त)–साध्वस–विक्लव (२.१) |
च | च (अव्ययः) |
चेतः | चेतस् (२.१) |
छन्दः
पुष्पिताग्रा = [१२: ननरय] १,३ + [१२: नजजरग] २,४
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ |
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अ | व | च | य | प | रि | भो | ग | व | न्ति | हिं | स्रैः |
स | ह | च | रि | ता | न्य | मृ | गा | णि | का | न | ना | नि |
अ | भि | द | धु | र | भि | तो | मु | निं | व | धू | भ्यः |
स | मु | दि | त | सा | ध्व | स | वि | क्ल | वं | च | चे | तः |