पदच्छेदः
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प्रीते | प्रीत (√प्री + क्त, ७.१) |
पिनाकिनि | पिनाकिन् (७.१) |
मया | मद् (३.१) |
सह | सह (अव्ययः) |
लोकपालैर् | लोकपाल (३.३) |
लोकत्रये | लोकत्रय (७.१) |
ऽपि | अपि (अव्ययः) |
विहिताप्रतिवार्यवीर्यः | विहित (√वि-धा + क्त)–अ (अव्ययः)–प्रतिवार्य (√प्रति-वारय् + कृत्)–वीर्य (१.१) |
लक्ष्मीं | लक्ष्मी (२.१) |
समुत्सुकयितासि | समुत्सुकयितासि (√सम्-उत्सुकय् लुट् म.पु. ) |
भृशं | भृशम् (अव्ययः) |
परेषाम् | पर (६.३) |
उच्चार्य | उच्चार्य (√उत्-चारय् + ल्यप्) |
वाचम् | वाच् (२.१) |
इति | इति (अव्ययः) |
तेन | तेन (अव्ययः) |
तिरोबभूवे | तिरोबभूवे (√तिरस्-भू लिट् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
वसन्ततिलका [१४: तभजजगग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ |
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प्री | ते | पि | ना | कि | नि | म | या | स | ह | लो | क | पा | लै |
र्लो | क | त्र | ये | ऽपि | वि | हि | ता | प्र | ति | वा | र्य | वी | र्यः |
ल | क्ष्मीं | स | मु | त्सु | क | यि | ता | सि | भृ | शं | प | रे | षा |
मु | च्चा | र्य | वा | च | मि | ति | ते | न | ति | रो | ब | भू | वे |
त | भ | ज | ज | ग | ग |