पदच्छेदः
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ईशार्थम् | ईश–अर्थ (२.१) |
अम्भसि | अम्भस् (७.१) |
चिराय | चिराय (अव्ययः) |
तपश् | तपस् (२.१) |
चरन्त्या | चरत् (√चर् + शतृ, ६.१) |
यादोविलङ्घनविलोलविलोचनायाः | यादस्–विलङ्घन–विलोल–विलोचन (६.१) |
आलम्बताग्रकरम् | आलम्बत (√आ-लम्ब् लङ् प्र.पु. एक.)–अग्रकर (२.१) |
अत्र | अत्र (अव्ययः) |
भवो | भव (१.१) |
भवान्याः | भवानी (६.१) |
च्योतन्निदाघसलिलाङ्गुलिना | च्योतत् (√च्युत् + शतृ)–निदाघ–सलिल–अङ्गुलि (३.१) |
करेण | कर (३.१) |
छन्दः
वसन्ततिलका [१४: तभजजगग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ |
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ई | शा | र्थ | म | म्भ | सि | चि | रा | य | त | प | श्च | र | न्त्या |
या | दो | वि | ल | ङ्घ | न | वि | लो | ल | वि | लो | च | ना | याः |
आ | ल | म्ब | ता | ग्र | क | र | म | त्र | भ | वो | भ | वा | न्याः |
श्च्यो | त | न्नि | दा | घ | स | लि | ला | ङ्गु | लि | ना | क | रे | ण |
त | भ | ज | ज | ग | ग |