पदच्छेदः
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व्यधत्त | व्यधत्त (√वि-धा लङ् प्र.पु. एक.) |
यस्मिन् | यद् (७.१) |
पुरम् | पुर (२.१) |
उच्चगोपुरं | उच्च–गोपुर (२.१) |
पुरां | पुर् (६.३) |
विजेतुर् | विजेतृ (६.१) |
धृतये | धृति (४.१) |
धनाधिपः | धनाधिप (१.१) |
स | तद् (१.१) |
एष | एतद् (१.१) |
कैलास | कैलास (१.१) |
उपान्तसर्पिणः | उपान्त–सर्पिन् (६.१) |
करोत्य् | करोति (√कृ लट् प्र.पु. एक.) |
अकालास्तमयं | अकाल–अस्तमय (२.१) |
विवस्वतः | विवस्वन्त् (६.१) |
छन्दः
वंशस्थम् [१२: जतजर]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ |
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व्य | ध | त्त | य | स्मि | न्पु | र | मु | च्च | गो | पु | रं |
पु | रां | वि | जे | तु | र्धृ | त | ये | ध | ना | धि | पः |
स | ए | ष | कै | ला | स | उ | पा | न्त | स | र्पि | णः |
क | रो | त्य | का | ला | स्त | म | यं | वि | व | स्व | तः |
ज | त | ज | र |