पदच्छेदः
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संमूर्छतां | संमूर्छत् (√सम्-मूर्छ् + शतृ, ६.३) |
रजतभित्तिमयूखजालैर् | रजत–भित्ति–मयूख–जाल (३.३) |
आलोकपादपलतान्तरनिर्गतानाम् | आलोक–पादप–लता–अन्तर–निर्गत (√निः-गम् + क्त, ६.३) |
घर्मद्युतेर् | घर्मद्युति (६.१) |
इह | इह (अव्ययः) |
मुहुः | मुहुर् (अव्ययः) |
पटलानि | पटल (१.३) |
धाम्नाम् | धामन् (६.३) |
आदर्शमण्डलनिभानि | आदर्श–मण्डल–निभ (१.३) |
समुल्लसन्ति | समुल्लसन्ति (√समुत्-लस् लट् प्र.पु. बहु.) |
छन्दः
वसन्ततिलका [१४: तभजजगग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ |
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सं | मू | र्छ | तां | र | ज | त | भि | त्ति | म | यू | ख | जा | लै |
रा | लो | क | पा | द | प | ल | ता | न्त | र | नि | र्ग | ता | नाम् |
घ | र्म | द्यु | ते | रि | ह | मु | हुः | प | ट | ला | नि | धा | म्ना |
मा | द | र्श | म | ण्ड | ल | नि | भा | नि | स | मु | ल्ल | स | न्ति |
त | भ | ज | ज | ग | ग |