पदच्छेदः
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सेतुत्वं | सेतु–त्व (२.१) |
दधति | दधति (√धा लट् प्र.पु. एक.) |
पयोमुचां | पयोमुच् (६.३) |
विताने | वितान (७.१) |
संरम्भाद् | संरम्भ (५.१) |
अभिपततो | अभिपतत् (√अभि-पत् + शतृ, २.३) |
रथाञ् | रथ (२.३) |
जवेन | जव (३.१) |
आनिन्युर् | आनिन्युः (√आ-नी लिट् प्र.पु. बहु.) |
नियमितरश्मिभुग्नघोणाः | नियमित (√नि-यम् + क्त)–रश्मि–भुग्न (√भुज् + क्त)–घोणा (१.३) |
कृच्छ्रेण | कृच्छ्र (३.१) |
क्षितिम् | क्षिति (२.१) |
अवनामितस् | अवनामित (√अव-नामय् + क्त, १.१) |
तुरङ्गाः | तुरंग (१.३) |
छन्दः
प्रहर्षिणी [१३: मनजरग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ |
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से | तु | त्वं | द | ध | ति | प | यो | मु | चां | वि | ता | ने |
सं | र | म्भा | द | भि | प | त | तो | र | था | ञ्ज | वे | न |
आ | नि | न्यु | र्नि | य | मि | त | र | श्मि | भु | ग्न | घो | णाः |
कृ | च्छ्रे | ण | क्षि | ति | म | व | ना | मि | त | स्तु | र | ङ्गाः |
म | न | ज | र | ग |