पदच्छेदः
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क्लान्तो | क्लान्त (√क्लम् + क्त, १.१) |
ऽपि | अपि (अव्ययः) |
त्रिदशवधूजनः | त्रिदश–वधू–जन (१.१) |
पुरस्ताल् | पुरस्तात् (अव्ययः) |
लीनाहिश्वसितविलोलपल्लवानाम् | लीन (√ली + क्त)–अहि–श्वसित–विलोल–पल्लव (६.३) |
सेव्यानां | सेव्य (√सेव् + कृत्, ६.३) |
हतविनयैर् | हत (√हन् + क्त)–विनय (३.३) |
इवावृतानां | इव (अव्ययः)–आवृत (√आ-वृ + क्त, ६.३) |
सम्पर्कं | सम्पर्क (२.१) |
परिहरति | परिहरति (√परि-हृ लट् प्र.पु. एक.) |
स्म | स्म (अव्ययः) |
चन्दनानाम् | चन्दन (६.३) |
छन्दः
प्रहर्षिणी [१३: मनजरग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ |
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क्ला | न्तो | ऽपि | त्रि | द | श | व | धू | ज | नः | पु | र | स्ता |
ल्ली | ना | हि | श्व | सि | त | वि | लो | ल | प | ल्ल | वा | नाम् |
से | व्या | नां | ह | त | वि | न | यै | रि | वा | वृ | ता | नां |
स | म्प | र्कं | प | रि | ह | र | ति | स्म | च | न्द | ना | नाम् |
म | न | ज | र | ग |