पदच्छेदः
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उत्सृष्टध्वजकुथकङ्कटा | उत्सृष्ट (√उत्-सृज् + क्त)–ध्वज–कुथ–कङ्कट (१.३) |
धरित्रीम् | धरित्री (२.१) |
आनीता | आनीत (√आ-नी + क्त, १.३) |
विदितनयैः | विदित (√विद् + क्त)–नय (३.३) |
श्रमं | श्रम (२.१) |
विनेतुम् | विनेतुम् (√वि-नी + तुमुन्) |
आक्षिप्तद्रुमगहना | आक्षिप्त (√आ-क्षिप् + क्त)–द्रुम–गहन (१.३) |
युगान्तवातैः | युगान्त–वात (३.३) |
पर्यस्ता | पर्यस्त (√परि-अस् + क्त, १.३) |
गिरय | गिरि (१.३) |
इव | इव (अव्ययः) |
द्विपा | द्विप (१.३) |
विरेजुः | विरेजुः (√वि-राज् लिट् प्र.पु. बहु.) |
छन्दः
प्रहर्षिणी [१३: मनजरग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ |
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उ | त्सृ | ष्ट | ध्व | ज | कु | थ | क | ङ्क | टा | ध | रि | त्री |
मा | नी | ता | वि | दि | त | न | यैः | श्र | मं | वि | ने | तुम् |
आ | क्षि | प्त | द्रु | म | ग | ह | ना | यु | गा | न्त | वा | तैः |
प | र्य | स्ता | गि | र | य | इ | व | द्वि | पा | वि | रे | जुः |
म | न | ज | र | ग |