पदच्छेदः
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निम्नगायाः | निम्नगा (६.१) |
क्रीडन्तो | क्रीडत् (√क्रीड् + शतृ, १.३) |
गजपतयः | गज–पति (१.३) |
पयांसि | पयस् (२.३) |
कृत्वा | कृत्वा (√कृ + क्त्वा) |
किञ्जल्कव्यवहितताम्रदानलेखैर् | किञ्जल्क–व्यवहित (√व्यव-धा + क्त)–ताम्र–दान–लेखा (३.३) |
उत्तेरुः | उत्तेरुः (√उत्-तृ लिट् प्र.पु. बहु.) |
सरसिजगन्धिभिः | सरसिज–गन्धिन् (३.३) |
कपोलैः | कपोल (३.३) |
छन्दः
प्रहर्षिणी [१३: मनजरग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ |
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प्र | श्च्यो | त | न्म | द | सु | र | भी | णि | नि | म्न | गा | याः |
क्री | ड | न्तो | ग | ज | प | त | यः | प | यां | सि | कृ | त्वा |
कि | ञ्ज | ल्क | व्य | व | हि | त | ता | म्र | दा | न | ले | खै |
रु | त्ते | रुः | स | र | सि | ज | ग | न्धि | भिः | क | पो | लैः |
म | न | ज | र | ग |