पदच्छेदः
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आघ्राय | आघ्राय (√आ-घ्रा + ल्यप्) |
क्षणम् | क्षण (२.१) |
अतितृष्यतापि | अतितृष्यत् (√अति-तृष् + शतृ, ३.१)–अपि (अव्ययः) |
रोषाद् | रोष (५.१) |
उत्तीरं | उत्तीरम् (अव्ययः) |
निहितविवृत्तलोचनेन | निहित (√नि-धा + क्त)–विवृत्त (√वि-वृत् + क्त)–लोचन (३.१) |
संपृक्तं | संपृक्त (√सम्-पृच् + क्त, १.१) |
वनकरिनां | वन–करिन् (६.३) |
मदाम्बुसेकैर् | मद–अम्बु–सेक (३.३) |
नाचेमे | न (अव्ययः)–आचेमे (√आ-चम् लिट् प्र.पु. एक.) |
हिमम् | हिम (१.१) |
अपि | अपि (अव्ययः) |
वारि | वारि (१.१) |
वारणेन | वारण (३.१) |
छन्दः
प्रहर्षिणी [१३: मनजरग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ |
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आ | घ्रा | य | क्ष | ण | म | ति | तृ | ष्य | ता | पि | रो | षा |
दु | त्ती | रं | नि | हि | त | वि | वृ | त्त | लो | च | ने | न |
स | म्पृ | क्तं | व | न | क | रि | नां | म | दा | म्बु | से | कै |
र्ना | चे | मे | हि | म | म | पि | वा | रि | वा | र | णे | न |
म | न | ज | र | ग |