पदच्छेदः
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तिष्ठद्भिः | तिष्ठत् (√स्था + शतृ, ३.३) |
कथमपि | कथम् (अव्ययः)–अपि (अव्ययः) |
देवतानुभावाद् | देवता–अनुभाव (५.१) |
आकृष्टैः | आकृष्ट (√आ-कृष् + क्त, ३.३) |
प्रजविभिर् | प्रजविन् (३.३) |
आयतं | आयत (√आ-यम् + क्त, २.१) |
तुरङ्गैः | तुरंग (३.३) |
नेमीनाम् | नेमि (६.३) |
असति | असत् (७.१) |
विवर्तनै | विवर्तन (३.३) |
रथौघैर् | रथ–ओघ (३.३) |
आसेदे | आसेदे (√आ-सद् लिट् प्र.पु. एक.) |
वियति | वियन्त् (७.१) |
विमानवत् | विमान–वत् (अव्ययः) |
प्रवृत्तिः | प्रवृत्ति (१.१) |
छन्दः
प्रहर्षिणी [१३: मनजरग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ |
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ति | ष्ठ | द्भिः | क | थ | म | पि | दे | व | ता | नु | भा | वा |
दा | कृ | ष्टैः | प्र | ज | वि | भि | रा | य | तं | तु | र | ङ्गैः |
ने | मी | ना | म | स | ति | वि | व | र्त | न | ई | र | थौ | घै |
रा | से | दे | वि | य | ति | वि | मा | न | व | त्प्र | वृ | त्तिः |
म | न | ज | र | ग |