पदच्छेदः
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कान्तानां | कान्ता (६.३) |
कृतपुलकः | कृत (√कृ + क्त)–पुलक (१.१) |
स्तनाङ्गरागे | स्तन–अङ्गराग (७.१) |
वक्त्रेषु | वक्त्र (७.३) |
च्युततिलकेषु | च्युत (√च्यु + क्त)–तिलक (७.३) |
मौक्तिकाभः | मौक्तिक–आभ (१.१) |
संपेदे | संपेदे (√सम्-पद् लिट् प्र.पु. एक.) |
श्रमसलिलोद्गमो | श्रम–सलिल–उद्गम (१.१) |
विभूषा | विभूषा (१.१) |
रम्याणां | रम्या (६.३) |
विकृतिर् | विकृति (१.१) |
अपि | अपि (अव्ययः) |
श्रियं | श्री (२.१) |
तनोति | तनोति (√तन् लट् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
प्रहर्षिणी [१३: मनजरग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ |
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का | न्ता | नां | कृ | त | पु | ल | कः | स्त | ना | ङ्ग | रा | गे |
व | क्त्रे | षु | च्यु | त | ति | ल | के | षु | मौ | क्ति | का | भस् |
स | म्पे | दे | श्र | म | स | लि | लो | द्ग | मो | वि | भू | षा |
र | म्या | णां | वि | कृ | ति | र | पि | श्रि | यं | त | नो | ति |
म | न | ज | र | ग |