८.५७
संक्रान्तचन्दनरसाहितवर्णभेदं विच्छिन्नभूषणमणिप्रकरांशुचित्रम् ।
बद्धोर्मि नाकवनितापरिभुक्तमुक्तं सिन्धोर्बभार सलिलं शयनीयलक्ष्मीम् ॥
पदच्छेदः
संक्रान्तचन्दनरसाहितवर्णभेदंसंक्रान्त (√सम्-क्रम् + क्त)–चन्दन–रस–आहित (√आ-धा + क्त)–वर्ण–भेद (१.१)
विच्छिन्नभूषणमणिप्रकरांशुचित्रम्विच्छिन्न (√वि-छिद् + क्त)–भूषण–मणि–प्रकर–अंशु–चित्र (१.१)
बद्धोर्मिबद्ध (√बन्ध् + क्त)–ऊर्मि (१.१)
नाकवनितापरिभुक्तमुक्तंनाक–वनिता–परिभुक्त (√परि-भुज् + क्त)–मुक्त (√मुच् + क्त, १.१)
सिन्धोर्सिन्धु (६.१)
बभारबभार (√भृ लिट् प्र.पु. एक.)
सलिलंसलिल (१.१)
शयनीयलक्ष्मीम्शयनीय–लक्ष्मी (२.१)
छन्दः वसन्ततिलका [१४: तभजजगग]
छन्दोविश्लेषणम्
१०१११२१३१४
सं क्रान्तन्द साहिर्ण भे दं
वि च्छिन्न भू णिप्र रांशु चि त्रम्
द्धोर्मि नानि तारि भुक्त मु क्तं
सि न्धोर्ब भालि लं नी क्ष्मीम्
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