पदच्छेदः
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क्षान्तिश् | क्षान्ति (१.१) |
चेत् | चेद् (अव्ययः) |
कवचेन | कवच (३.१) |
किं | क (१.१) |
किम् | क (१.१) |
अरिभिः | अरि (३.३) |
क्रोधो | क्रोध (१.१) |
ऽस्ति | अस्ति (√अस् लट् प्र.पु. एक.) |
चेद् | चेद् (अव्ययः) |
देहिनां | देहिन् (६.३) |
ज्ञातिश्चेद् | ज्ञाति (१.१)–चेद् (अव्ययः) |
अनलेन | अनल (३.१) |
किं | क (१.१) |
यदि | यदि (अव्ययः) |
सुहृद् | सुहृद् (१.१) |
दिव्यौषधं | दिव्य–औषध (१.१) |
किम्फलम् | किम्फल (१.१) |
किं | क (१.१) |
सर्पैर् | सर्प (३.३) |
यदि | यदि (अव्ययः) |
दुर्जनाः | दुर्जन (१.३) |
किमु | किमु (अव्ययः) |
धनैर् | धन (३.३) |
विद्या | विद्या (१.१) |
ऽनवद्या | अनवद्य (१.१) |
यदि | यदि (अव्ययः) |
व्रीडा | व्रीडा (१.१) |
चेत् | चेद् (अव्ययः) |
किमु | किमु (अव्ययः) |
भूषणैः | भूषण (३.३) |
सुकविता | सु (अव्ययः)–कवि–ता (१.१) |
यद्य् | यदि (अव्ययः) |
अस्ति | अस्ति (√अस् लट् प्र.पु. एक.) |
राज्येन | राज्य (३.१) |
किम् | क (१.१) |
छन्दः
शार्दूलविक्रीडितम् [१९: मसजसततग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ | १५ | १६ | १७ | १८ | १९ |
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क्षा | न्ति | श्चे | त्क | व | चे | न | किं | कि | म | रि | भिः | क्रो | धो | ऽस्ति | चे | द्दे | हि | नां |
ज्ञा | ति | श्चे | द | न | ले | न | किं | य | दि | सु | हृ | द्दि | व्यौ | ष | धं | किं | फ | लम् |
किं | स | र्पै | र्य | दि | दु | र्ज | नाः | कि | मु | ध | नै | र्वि | द्या | ऽन | व | द्या | य | दि |
व्री | डा | चे | त्कि | मु | भू | ष | णैः | सु | क | वि | ता | य | द्य | स्ति | रा | ज्ये | न | किम् |
म | स | ज | स | त | त | ग |