पदच्छेदः
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यद् | यद् (१.१) |
धात्रा | धातृ (३.१) |
निजभालपट्टलिखितं | निज–भाल–पट्ट–लिखित (√लिख् + क्त, १.१) |
स्तोकं | स्तोक (१.१) |
महद् | महत् (१.१) |
वा | वा (अव्ययः) |
धनं | धन (१.१) |
तत् | तद् (२.१) |
प्राप्नोति | प्राप्नोति (√प्र-आप् लट् प्र.पु. एक.) |
मरुस्थले | मरु–स्थल (७.१) |
ऽपि | अपि (अव्ययः) |
नितरां | नितराम् (अव्ययः) |
मेरौ | मेरु (७.१) |
ततो | ततस् (अव्ययः) |
नाधिकम् | न (अव्ययः)–अधिक (२.१) |
तद् | तद् (२.१) |
धीरो | धीर (१.१) |
भव | भव (√भू लोट् म.पु. ) |
वित्तवत्सु | वित्तवत् (७.३) |
कृपणां | कृपण (२.१) |
वृत्तिं | वृत्ति (२.१) |
वृथा | वृथा (अव्ययः) |
सा | तद् (१.१) |
कृथाः | कृथाः (√कृ म.पु. ) |
कूपे | कूप (७.१) |
पश्य | पश्य (√पश् लोट् म.पु. ) |
पयोनिधावपि | पयोनिधि (७.१)–अपि (अव्ययः) |
घटो | घट (१.१) |
गृह्णाति | गृह्णाति (√ग्रह् लट् प्र.पु. एक.) |
तुल्यं | तुल्य (२.१) |
जलम् | जल (२.१) |
छन्दः
शार्दूलविक्रीडितम् [१९: मसजसततग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ | १५ | १६ | १७ | १८ | १९ |
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य | द्धा | त्रा | नि | ज | भा | ल | प | ट्ट | लि | खि | तं | स्तो | कं | म | ह | द्वा | ध | नं |
त | त्प्रा | प्नो | ति | म | रु | स्थ | ले | ऽपि | नि | त | रां | मे | रौ | त | तो | ना | धि | कम् |
त | द्धी | रो | भ | व | वि | त्त | व | त्सु | कृ | प | णां | वृ | त्तिं | वृ | था | सा | कृ | थाः |
कू | पे | प | श्य | प | यो | नि | धा | व | पि | घ | टो | गृ | ह्णा | ति | तु | ल्यं | ज | लम् |
म | स | ज | स | त | त | ग |