पदच्छेदः
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उद्भासिताखिलखलस्य | उद्भासित (√उत्-भास् + क्त)–अखिल–खल (६.१) |
विशृङ्खलस्य | विशृङ्खल (६.१) |
प्राग्जातविस्तृतनिजाधमकर्मवृत्तेः | प्राञ्च्–जात (√जन् + क्त)–विस्तृत (√वि-स्तृ + क्त)–निज–अधम–कर्मन्–वृत्ति (६.१) |
दैवाद् | दैव (५.१) |
अवाप्तविभवस्य | अवाप्त (√अव-आप् + क्त)–विभव (६.१) |
गुणद्विषो | गुण–द्विष् (६.१) |
ऽस्य | इदम् (६.१) |
नीचस्य | नीच (६.१) |
गोचरगतैः | गोचर–गत (३.३) |
सुखम् | सुख (१.१) |
आप्यते | आप्यते (√आप् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
वसन्ततिलका [१४: तभजजगग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ |
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उ | द्भा | सि | ता | खि | ल | ख | ल | स्य | वि | शृ | ङ्ख | ल | स्य |
प्रा | ग्जा | त | वि | स्तृ | त | नि | जा | ध | म | क | र्म | वृ | त्तेः |
दै | वा | द | वा | प्त | वि | भ | व | स्य | गु | ण | द्वि | षो | ऽस्य |
नी | च | स्य | गो | च | र | ग | तैः | सु | ख | मा | प्य | ते |
त | भ | ज | ज | ग | ग |