पदच्छेदः
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किं | क (१.१) |
तेन | तद् (३.१) |
हेमगिरिणा | हेमन्–गिरि (३.१) |
रजताद्रिणा | रजत–अद्रि (३.१) |
वा | वा (अव्ययः) |
यत्राश्रिताश् | यत्र (अव्ययः)–आश्रित (√आ-श्रि + क्त, १.३) |
च | च (अव्ययः) |
तरवस् | तरु (१.३) |
तरवस् | तरु (१.३) |
त | तद् (१.३) |
एव | एव (अव्ययः) |
मन्यामहे | मन्यामहे (√मन् लट् उ.पु. द्वि.) |
मलयम् | मलय (२.१) |
एव | एव (अव्ययः) |
यदाश्रयेण | यद्–आश्रय (३.१) |
कङ्कोलनिम्बकटुजा | कङ्कोल–निम्ब–कटु–ज (१.३) |
अपि | अपि (अव्ययः) |
चन्दनाः | चन्दन (१.३) |
स्युः | स्युः (√अस् विधिलिङ् प्र.पु. बहु.) |
छन्दः
वसन्ततिलका [१४: तभजजगग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ |
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किं | ते | न | हे | म | गि | रि | णा | र | ज | ता | द्रि | णा | वा |
य | त्रा | श्रि | ता | श्च | त | र | व | स्त | र | व | स्त | ए | व |
म | न्या | म | हे | म | ल | य | मे | व | य | दा | श्र | ये | ण |
क | ङ्को | ल | नि | म्ब | क | टु | जा | अ | पि | च | न्द | नाः | स्युः |
त | भ | ज | ज | ग | ग |