पदच्छेदः
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शम्भुस्वयम्भुहरयो | शम्भु–स्वयम्भु–हरि (१.३) |
हरिणेक्षणानां | हरिण–ईक्षण (६.३) |
येनाक्रियन्त | यद् (३.१)–अक्रियन्त (√कृ प्र.पु. बहु.) |
सततं | सततम् (अव्ययः) |
गृहकुम्भदासाः | गृह–कुम्भ–दास (१.३) |
वाचाम् | वाच् (६.३) |
अगोचरचरित्रविचित्रिताय | अगोचर–चरित्र–विचित्रित (४.१) |
तस्मै | तद् (४.१) |
नमो | नमस् (१.१) |
भगवते | भगवत् (४.१) |
मकरध्वजाय | मकरध्वज (४.१) |
छन्दः
वसन्ततिलका [१४: तभजजगग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ |
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श | म्भु | स्व | य | म्भु | ह | र | यो | ह | रि | णे | क्ष | णा | नां |
ये | ना | क्रि | य | न्त | स | त | तं | गृ | ह | कु | म्भ | दा | साः |
वा | चा | म | गो | च | र | च | रि | त्र | वि | चि | त्रि | ता | य |
त | स्मै | न | मो | भ | ग | व | ते | म | क | र | ध्व | जा | य |
त | भ | ज | ज | ग | ग |