पदच्छेदः
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केशानाकुलयन् | केश (२.३)–आकुलयत् (√आकुलय् + शतृ, १.१) |
दृशो | दृश् (२.३) |
मुकुलयन् | मुकुलयत् (√मुकुलय् + शतृ, १.१) |
वासो | वासस् (२.१) |
बलाद् | बल (५.१) |
आक्षिपन्नातन्वन् | आक्षिपत् (√आ-क्षिप् + शतृ, १.१)–आतन्वत् (√आ-तन् + शतृ, १.१) |
पुलकोद्गमं | पुलक–उद्गम (२.१) |
प्रकटयन्न् | प्रकटयत् (√प्रकटय् + शतृ, १.१) |
आवेगकम्पं | आवेग–कम्प (२.१) |
शनैः | शनैस् (अव्ययः) |
वारं | वार (२.१) |
वारम् | वार (२.१) |
उदारसीत्कृतकृतो | उदार–सीत्कृत (√शीत्-कृ + क्त)–कृत (√कृ + क्त, १.१) |
दन्तच्छदान् | दन्तच्छद (२.३) |
पीडयन् | पीडयत् (√पीडय् + शतृ, १.१) |
प्रायः | प्रायस् (अव्ययः) |
शैशिर | शैशिर (१.१) |
एष | एतद् (१.१) |
सम्प्रति | सम्प्रति (अव्ययः) |
मरुत् | मरुत् (१.१) |
कान्तासु | कान्ता (७.३) |
कान्तायते | कान्तायते (√कान्ताय् लट् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
शार्दूलविक्रीडितम् [१९: मसजसततग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ | १५ | १६ | १७ | १८ | १९ |
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के | शा | ना | कु | ल | य | न्दृ | शो | मु | कु | ल | य | न्वा | सो | ब | ला | दा | क्षि | प |
न्ना | त | न्व | न्पु | ल | को | द्ग | मं | प्र | क | ट | य | न्ना | वे | ग | क | म्पं | श | नैः |
बा | रं | बा | र | मु | दा | र | सी | त्कृ | त | कृ | तो | द | न्त | च्छ | दा | न्पी | ड | य |
न्प्रा | यः | शै | शि | र | ए | ष | स | म्प्र | ति | म | रु | त्का | न्ता | सु | का | न्ता | य | ते |
म | स | ज | स | त | त | ग |