पदच्छेदः
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रागस्यागारम् | राग (६.१)–आगार (१.१) |
एकं | एक (१.१) |
नरकशतमहादुःखसम्प्राप्तिहेतुर्मोहस्योत्पत्तिबीजं | नरक–शत–महत्–दुःख–सम्प्राप्ति–हेतु (१.१)–मोह (६.१)–उत्पत्ति–बीज (१.१) |
जलधरपटलं | जलधर–पटल (१.१) |
ज्ञानताराधिपस्य | ज्ञान–ताराधिप (६.१) |
कन्दर्पस्यैकमित्रं | कन्दर्प (६.१)–एक–मित्र (१.१) |
प्रकटितविविधस्पष्टदोषप्रबन्धं | प्रकटित (√प्रकटय् + क्त)–विविध–स्पष्ट (√पश् + क्त)–दोष–प्रबन्ध (१.१) |
लोके | लोक (७.१) |
ऽस्मिन् | इदम् (७.१) |
न | न (अव्ययः) |
ह्य् | हि (अव्ययः) |
अर्थव्रजकुलभवनयौवनाद् | अर्थ–व्रज–कुल–भवन–यौवन (५.१) |
अन्यद् | अन्य (१.१) |
अस्ति | अस्ति (√अस् लट् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
स्रग्धरा [२१: मरभनययय]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ | १५ | १६ | १७ | १८ | १९ | २० | २१ |
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रा | ग | स्या | गा | र | मे | कं | न | र | क | श | त | म | हा | दुः | ख | स | म्प्रा | प्ति | हे | तु |
र्मो | ह | स्यो | त्प | त्ति | बी | जं | ज | ल | ध | र | प | ट | लं | ज्ञा | न | ता | रा | धि | प | स्य |
क | न्द | र्प | स्यै | क | मि | त्रं | प्र | क | टि | त | वि | वि | ध | स्प | ष्ट | दो | ष | प्र | ब | न्धं |
लो | के | ऽस्मि | न्न | ह्य | र्थ | व्र | ज | कु | ल | भ | व | न | यौ | व | ना | द | न्य | द | स्ति |
म | र | भ | न | य | य | य |