पदच्छेदः
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संसारे | संसार (७.१) |
ऽस्मिन्न् | इदम् (७.१) |
असारे | असार (७.१) |
कुनृपतिभवनद्वारसेवाकलङ्कव्यासङ्गव्यस्तधैर्यं | कु (अव्ययः)–नृपति–भवन–द्वार–सेवा–कलङ्क–व्यासङ्ग–व्यस्त (√वि-अस् + क्त)–धैर्य (२.१) |
कथम् | कथम् (अव्ययः) |
अमलधियो | अमल–धी (१.३) |
मानसं | मानस (२.१) |
संविदध्युः | संविदध्युः (√संवि-धा विधिलिङ् प्र.पु. बहु.) |
यद्य् | यदि (अव्ययः) |
एताः | एतद् (१.३) |
प्रोद्यदिन्दुद्युतिनिचयभृतो | प्रोद्यत् (√प्रोत्-इ + शतृ)–इन्दु–द्युति–निचय–भृत् (१.३) |
न | न (अव्ययः) |
स्युर् | स्युः (√अस् विधिलिङ् प्र.पु. बहु.) |
अम्भोजनेत्राः | अम्भोज–नेत्र (१.३) |
प्रेङ्खत्काञ्चीकलापाः | प्रेङ्खत् (√प्रेङ्ख् + शतृ)–काञ्ची–कलाप (१.३) |
स्तनभरविनमन्मध्यभाजस् | स्तन–भर–विनमत् (√वि-नम् + शतृ)–मध्य–भाज् (१.३) |
तरुण्यः | तरुण (१.३) |
छन्दः
स्रग्धरा [२१: मरभनययय]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ | १५ | १६ | १७ | १८ | १९ | २० | २१ |
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सं | सा | रे | ऽस्मि | न्न | सा | रे | कु | नृ | प | ति | भ | व | न | द्वा | र | से | वा | क | ल | ङ्क |
व्या | स | ङ्ग | व्य | स्त | धै | र्यं | क | थ | म | म | ल | धि | यो | मा | न | सं | सं | वि | द | ध्युः |
य | द्ये | ताः | प्रो | द्य | दि | न्दु | द्यु | ति | नि | च | य | भृ | तो | न | स्यु | र | म्भो | ज | ने | त्राः |
प्रे | ङ्ख | त्का | ञ्ची | क | ला | पाः | स्त | न | भ | र | वि | न | म | न्म | ध्य | भा | ज | स्त | रु | ण्यः |
म | र | भ | न | य | य | य |