पदच्छेदः
Click to Toggle
दीना | दीन (१.१) |
दीनमुखैः | दीन–मुख (३.३) |
सदैव | सदा (अव्ययः)–एव (अव्ययः) |
शिशुकैराकृष्टजीर्णाम्बरा | शिशुक (३.३)–आकृष्ट (√आ-कृष् + क्त)–जीर्ण (√जृ + क्त)–अम्बर (१.१) |
क्रोशद्भिः | क्रोशत् (√क्रुश् + शतृ, ३.३) |
क्षुधितैर् | क्षुधित (√क्षुध् + क्त, ३.३) |
निरन्नविधुरा | निरन्न–विधुर (१.१) |
दृश्या | दृश्य (√दृश् + कृत्, १.१) |
न | न (अव्ययः) |
चेद् | चेद् (अव्ययः) |
गेहिनी | गेहिनी (१.१) |
याच्ञाभङ्गभयेन | याच्ञा–भङ्ग–भय (३.१) |
गद्गदगलत्रुट्यद्विलीनाक्षरं | गद्गद–गल–त्रुट्यत् (√त्रुट् + शतृ)–विलीन (√वि-ली + क्त)–अक्षर (२.१) |
को | क (१.१) |
देहीति | देहि (√दा लोट् म.पु. )–इति (अव्ययः) |
वदेत् | वदेत् (√वद् विधिलिङ् प्र.पु. एक.) |
स्वदग्धजठरस्यार्थे | स्व–दग्ध–जठर (६.१)–अर्थ (७.१) |
मनस्वी | मनस्विन् (१.१) |
पुमान् | पुंस् (१.१) |
छन्दः
शार्दूलविक्रीडितम् [१९: मसजसततग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ | १५ | १६ | १७ | १८ | १९ |
---|
दी | ना | दी | न | मु | खैः | स | दै | व | शि | शु | कै | रा | कृ | ष्ट | जी | र्णा | म्ब | रा |
क्रो | श | द्भिः | क्षु | धि | तै | र्नि | र | न्न | वि | धु | रा | दृ | श्या | न | चे | द्गे | हि | नी |
या | च्ञा | भ | ङ्ग | भ | ये | न | ग | द्ग | द | ग | ल | त्रु | ट्य | द्वि | ली | ना | क्ष | रं |
को | दे | ही | ति | व | दे | त्स्व | द | ग्ध | ज | ठ | र | स्या | र्थे | म | न | स्वी | पु | मान् |
म | स | ज | स | त | त | ग |