पदच्छेदः
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ये | यद् (१.३) |
सन्तोषनिरन्तरप्रमुदितस् | संतोष–निरन्तर–प्रमुदित (√प्र-मुद् + क्त, १.१) |
तेषां | तद् (६.३) |
न | न (अव्ययः) |
भिन्ना | भिन्न (√भिद् + क्त, १.३) |
मुदो | मुद् (१.३) |
ये | यद् (१.३) |
त्व् | तु (अव्ययः) |
अन्ये | अन्य (१.३) |
धनलुब्धसङ्कलधियस् | धन–लुब्ध (√लुभ् + क्त)–संकल–धी (१.३) |
तेषां | तद् (६.३) |
न | न (अव्ययः) |
तृष्णाहता | तृष्णा (१.१)–आहत (√आ-हन् + क्त, १.१) |
इत्थं | इत्थम् (अव्ययः) |
कस्य | क (६.१) |
कृते | कृते (अव्ययः) |
कुतः | कुतस् (अव्ययः) |
स | तद् (१.१) |
विधिना | विधि (३.१) |
कीदृक्पदं | कीदृश् (२.१)–पद (२.१) |
सम्पदां | सम्पद् (६.३) |
स्वात्मन्येव | स्व–आत्मन् (७.१)–एव (अव्ययः) |
समाप्तहेममहिमा | समाप्त (√सम्-आप् + क्त)–हेमन्–महिमन् (१.१) |
मेरुर् | मेरु (१.१) |
न | न (अव्ययः) |
मे | मद् (६.१) |
रोचते | रोचते (√रुच् लट् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
शार्दूलविक्रीडितम् [१९: मसजसततग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ | १५ | १६ | १७ | १८ | १९ |
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ये | स | न्तो | ष | नि | र | न्त | र | प्र | मु | दि | त | स्ते | षां | न | भि | न्ना | मु | दो |
ये | त्व | न्ये | ध | न | लु | ब्ध | स | ङ्क | ल | धि | य | स्ते | सां | न | तृ | ष्णा | ह | ता |
इ | त्थं | क | स्य | कृ | ते | कु | तः | स | वि | धि | ना | की | दृ | क्प | दं | स | म्प | दां |
स्वा | त्म | न्ये | व | स | मा | प्त | हे | म | म | हि | मा | मे | रु | र्न | मे | रो | च | ते |
म | स | ज | स | त | त | ग |