पदच्छेदः
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ब्रह्मेन्द्रादिमरुद्गणांस् | ब्रह्मन्–इन्द्र–आदि–मरुत्–गण (२.३) |
तृणकणान् | तृण–कण (२.३) |
यत्र | यत्र (अव्ययः) |
स्थितो | स्थित (√स्था + क्त, १.१) |
मन्यते | मन्यते (√मन् लट् प्र.पु. एक.) |
यत्स्वादाद् | यद्–स्वाद (५.१) |
विरसा | विरस (१.३) |
भवन्ति | भवन्ति (√भू लट् प्र.पु. बहु.) |
विभवास् | विभव (१.३) |
त्रैलोक्यराज्यादयः | त्रैलोक्य–राज्य–आदि (१.३) |
भोगः | भोग (१.१) |
को | क (१.१) |
ऽपि | अपि (अव्ययः) |
स | तद् (१.१) |
एव | एव (अव्ययः) |
एकः | एक (१.१) |
परमो | परम (१.१) |
नित्योदितो | नित्योदित (१.१) |
जृम्भते | जृम्भते (√जृम्भ् लट् प्र.पु. एक.) |
भोः | भोः (अव्ययः) |
साधो | साधु (८.१) |
क्षणभङ्गुरे | क्षण–भङ्गुर (७.१) |
तद् | तद् (२.१) |
इतरे | इतर (७.१) |
भोगे | भोग (७.१) |
रतिं | रति (२.१) |
मा | मा (अव्ययः) |
कृथाः | कृथाः (√कृ म.पु. ) |
छन्दः
शार्दूलविक्रीडितम् [१९: मसजसततग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ | १५ | १६ | १७ | १८ | १९ |
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ब्र | ह्मे | न्द्रा | दि | म | रु | द्ग | णां | स्तृ | ण | क | णा | न्य | त्र | स्थि | तो | म | न्य | ते |
य | त्स्वा | दा | द्वि | र | सा | भ | व | न्ति | वि | भ | वा | स्त्रै | लो | क्य | रा | ज्या | द | यः |
भो | गः | को | ऽपि | स | ए | व | ए | क | प | र | मो | नि | त्यो | दि | तो | जृ | म्भ | ते |
भोः | सा | धो | क्ष | ण | भ | ङ्गु | रे | त | दि | त | रे | भो | गे | र | तिं | मा | कृ | थाः |
म | स | ज | स | त | त | ग |