पदच्छेदः
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विवेकव्याकोशे | विवेक–व्याकोश (७.१) |
विदधति | विदधत् (√वि-धा + शतृ, ७.१) |
समे | सम (७.१) |
शाम्यति | शाम्यति (√शम् लट् प्र.पु. एक.) |
तृषा | तृषा (१.१) |
परिष्वङ्गे | परिष्वङ्ग (७.१) |
तुङ्गे | तुङ्ग (७.१) |
प्रसरतितरां | प्रसरतितराम् (√प्र-सृ लट् प्र.पु. एक.) |
सा | तद् (१.१) |
परिणता | परिणत (√परि-नम् + क्त, १.१) |
जराजीर्णैश्वर्यग्रसनगहनाक्षेपकृपणस् | जरा–जीर्ण (√जृ + क्त)–ऐश्वर्य–ग्रसन–गहन–आक्षेप–कृपण (१.१) |
तृषापात्रं | तृषा–पात्र (१.१) |
यस्यां | यद् (७.१) |
भवति | भवति (√भू लट् प्र.पु. एक.) |
मरुताम् | मरुत् (६.३) |
अप्य् | अपि (अव्ययः) |
अधिपतिः | अधिपति (१.१) |
छन्दः
शिखरिणी [१७: यमनसभलग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ | १५ | १६ | १७ |
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वि | वे | क | व्या | को | शे | वि | द | ध | ति | स | मे | शा | म्य | ति | तृ | षा |
प | रि | ष्व | ङ्गे | तु | ङ्गे | प्र | स | र | ति | त | रां | सा | प | रि | ण | ता |
ज | रा | जी | र्णै | श्व | र्य | ग्र | स | न | ग | ह | ना | क्षे | प | कृ | प | ण |
स्तृ | षा | पा | त्रं | य | स्यां | भ | व | ति | म | रु | ता | म | प्य | धि | प | तिः |
य | म | न | स | भ | ल | ग |