Summary
O slayer-of-Mandhu (Krsna)! I do not desire to slay these men-even though they slay me-even for the sake of the kingdom of the three worlds-what to speak for the sake of the [mere] earth.
पदच्छेदः
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प्रीयन्ते | प्रीयन्ते (√प्री प्र.पु. बहु.) |
पितरस्तस्य | पितृ (१.३)–तद् (६.१) |
तथैव | तथा (अव्ययः)–एव (अव्ययः) |
च | च (अव्ययः) |
पितामहाः | पितामह (१.३) |
मातुलाः | मातुल (१.३) |
श्वशुराः | श्वशुर (१.३) |
पौत्राः | पौत्र (१.३) |
स्यालाः | स्याल (१.३) |
सम्बन्धिनस्तथा | सम्बन्धिन् (१.३)–तथा (अव्ययः) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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आ | चा | र्याः | पि | त | रः | पु | त्रा |
स्त | थै | व | च | पि | ता | म | हाः |
मा | तु | लाः | श्व | शु | राः | पौ | त्राः |
स्या | लाः | सं | ब | न्धि | न | स्त | था |