Summary
By slaying Dhrtarastra's sons what joy would be to go us, O Janardana?
पदच्छेदः
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एतान्न | एतद् (२.३)–न (अव्ययः) |
हन्तुमिच्छामि | हन्तुम् (√हन् + तुमुन्)–इच्छामि (√इष् लट् उ.पु. ) |
घ्नतो | घ्नत् (√हन् + शतृ, २.३) |
ऽपि | अपि (अव्ययः) |
मधुसूदन | मधुसूदन (८.१) |
अपि | अपि (अव्ययः) |
त्रैलोक्यराज्यस्य | त्रैलोक्य–राज्य (६.१) |
हेतोः | हेतु (५.१) |
किं | क (१.१) |
नु | नु (अव्ययः) |
महीकृते | मही–कृते (अव्ययः) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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ए | ता | न्न | ह | न्तु | मि | च्छा | मि |
घ्न | तो | ऽपि | म | धु | सू | द | न |
अ | पि | त्रै | लो | क्य | रा | ज्य | स्य |
हे | तोः | किं | नु | म | ही | कृ | ते |