Summary
Whosoever knows Me as the unborn and beginningless Absolute Lord of the universe, that person, not deluded among the mortals, is delivered from all sins.
पदच्छेदः
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यो | यद् (१.१) |
मामजमनादिं | मद् (२.१)–अज (२.१)–अनादि (२.१) |
च | च (अव्ययः) |
वेत्ति | वेत्ति (√विद् लट् प्र.पु. एक.) |
लोकमहेश्वरम् | लोक–महत्–ईश्वर (२.१) |
असंमूढः | असंमूढ (१.१) |
स | तद् (१.१) |
मर्त्येषु | मर्त्य (७.३) |
सर्वपापैः | सर्व–पाप (३.३) |
प्रमुच्यते | प्रमुच्यते (√प्र-मुच् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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यो | मा | म | ज | म | ना | दिं | च |
वे | त्ति | लो | क | म | हे | श्व | रम् |
अ | सं | मू | ढः | स | म | र्त्ये | षु |
स | र्व | पा | पैः | प्र | मु | च्य | ते |