Summary
You are the Primal God; You are the Ancient Soul; You are the transcending place of rest for this universe; You are the knower and the knowable; You are the Highest Abode; and the universe with its infinite forms is pervaded by You.
पदच्छेदः
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त्वमक्षरं | त्वद् (१.१)–अक्षर (१.१) |
परमं | परम (१.१) |
वेदितव्यं | वेदितव्य (√विद् + कृत्, १.१) |
त्वमस्य | त्वद् (१.१)–इदम् (६.१) |
विश्वस्य | विश्व (६.१) |
परं | पर (१.१) |
निधानम् | निधान (१.१) |
वेत्तासि | वेत्तासि (√विद् लुट् म.पु. ) |
वेद्यं | वेद्य (√विद् + कृत्, २.१) |
च | च (अव्ययः) |
परं | पर (२.१) |
च | च (अव्ययः) |
धाम | धामन् (२.१) |
त्वया | त्वद् (३.१) |
ततं | तत (√तन् + क्त, १.१) |
विश्वमनन्तरूप | विश्व (१.१)–अनन्त–रूप (८.१) |
छन्दः
उपजातिः [११]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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त्व | मा | दि | दे | वः | पु | रु | षः | पु | रा | ण |
स्त्व | म | स्य | वि | श्व | स्य | प | रं | नि | धा | नम् |
वे | त्ता | सि | वे | द्यं | च | प | रं | च | धा | म |
त्व | या | त | तं | वि | श्व | म | न | न्त | रू | प |