Summary
He who knows, in this manner, the Soul and the Material Cause together with Strands-he is not born again, even though he behaves in different ways.
पदच्छेदः
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य | यद् (१.१) |
एवं | एवम् (अव्ययः) |
वेत्ति | वेत्ति (√विद् लट् प्र.पु. एक.) |
पुरुषं | पुरुष (२.१) |
प्रकृतिं | प्रकृति (२.१) |
च | च (अव्ययः) |
गुणैः | गुण (३.३) |
सह | सह (अव्ययः) |
सर्वथा | सर्वथा (अव्ययः) |
वर्तमानो | वर्तमान (√वृत् + शानच्, १.१) |
ऽपि | अपि (अव्ययः) |
स | तद् (१.१) |
योगी | योगिन् (१.१) |
मयि | मद् (७.१) |
वर्तते | वर्तते (√वृत् लट् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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य | ए | वं | वे | त्ति | पु | रु | षं |
प्र | कृ | तिं | च | गु | णैः | स | ह |
स | र्व | था | व | र्त | मा | नो | ऽपि |
न | स | भू | यो | ऽभि | जा | य | ते |