Summary
When he perceives the [mutual] difference of beings as abiding in One, and its expansion from That alone, at that time he becomes the Brahman.
पदच्छेदः
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यदा | यदा (अव्ययः) |
भूतपृथग्भावमेकस्थमनुपश्यति | भूत–पृथग्भाव (२.१)–एकस्थ (२.१)–अनुपश्यति (√अनु-पश् लट् प्र.पु. एक.) |
तत | ततस् (अव्ययः) |
एव | एव (अव्ययः) |
च | च (अव्ययः) |
विस्तारं | विस्तार (२.१) |
ब्रह्म | ब्रह्मन् (२.१) |
सम्पद्यते | सम्पद्यते (√सम्-पद् लट् प्र.पु. एक.) |
तदा | तदा (अव्ययः) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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य | दा | भू | त | पृ | थ | ग्भा | व |
मे | क | स्थ | म | नु | प | श्य | ति |
त | त | ए | व | च | वि | स्ता | रं |
ब्र | ह्म | सं | प | द्य | ते | त | दा |