Summary
Just as the all-pervading Ether is not stained because of its subtleness, in the same fashion the Self, abiding in the body everywhere, is not stained.
पदच्छेदः
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यथा | यथा (अव्ययः) |
सर्वगतं | सर्व–गत (√गम् + क्त, १.१) |
सौक्ष्म्यादाकाशं | सौक्ष्म्य (५.१)–आकाश (१.१) |
नोपलिप्यते | न (अव्ययः)–उपलिप्यते (√उप-लिप् प्र.पु. एक.) |
सर्वत्रावस्थितो | सर्वत्र (अव्ययः)–अवस्थित (√अव-स्था + क्त, १.१) |
देहे | देह (७.१) |
तथात्मा | तथा (अव्ययः)–आत्मन् (१.१) |
नोपलिप्यते | न (अव्ययः)–उपलिप्यते (√उप-लिप् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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य | था | स | र्व | ग | तं | सौ | क्ष्म्या |
दा | का | शं | नो | प | लि | प्य | ते |
स | र्व | त्रा | व | स्थि | तो | दे | हे |
त | था | त्मा | नो | प | लि | प्य | ते |