Summary
When the knowledge-light arises in all the gates in this body, then one should also know that the Sattva has increased predominantly.
पदच्छेदः
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सर्वद्वारेषु | सर्व–द्वार (७.३) |
देहे | देह (७.१) |
ऽस्मिन्प्रकाश | इदम् (७.१)–प्रकाश (१.१) |
उपजायते | उपजायते (√उप-जन् लट् प्र.पु. एक.) |
ज्ञानं | ज्ञान (१.१) |
यदा | यदा (अव्ययः) |
तदा | तदा (अव्ययः) |
विद्याद्विवृद्धं | विद्यात् (√विद् विधिलिङ् प्र.पु. एक.)–विवृद्ध (√वि-वृध् + क्त, १.१) |
सत्त्वमित्युत | सत्त्व (१.१)–इति (अव्ययः)–उत (अव्ययः) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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स | र्व | द्वा | रे | षु | दे | हे | ऽस्मि |
न्प्र | का | श | उ | प | जा | य | ते |
ज्ञा | नं | य | दा | त | दा | वि | द्या |
द्वि | वृ | द्धं | स | त्त्व | मि | त्यु | त |