Summary
Greed, exertion, undertaking of actions, unrest, and craving-these are born when the Rajas increases predominantly, O chief of the Bharatas !
पदच्छेदः
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अप्रकाशो | अप्रकाश (१.१) |
ऽप्रवृत्तिश्च | अप्रवृत्ति (१.१)–च (अव्ययः) |
प्रमादो | प्रमाद (१.१) |
मोह | मोह (१.१) |
एव | एव (अव्ययः) |
च | च (अव्ययः) |
रजस्येतानि | रजस् (७.१)–एतद् (१.३) |
जायन्ते | जायन्ते (√जन् लट् प्र.पु. बहु.) |
विवृद्धे | विवृद्ध (√वि-वृध् + क्त, ७.१) |
भरतर्षभ | भरत–ऋषभ (८.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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अ | प्र | का | शो | ऽप्र | वृ | त्ति | श्च |
प्र | मा | दो | मो | ह | ए | व | च |
त | म | स्ये | ता | नि | जा | य | न्ते |
वि | वृ | द्धे | कु | रु | न | न्द | न |